रूमी

परिभाषा

Joshua J. Mark
द्वारा, Ruby Anand द्वारा अनुवादित
25 May 2020 पर प्रकाशित
अन्य भाषाओं में उपलब्ध: अंग्रेजी, फारसी, पुर्तगाली, तुर्की
Rumi (by don del castillo, CC BY-NC-ND)
रूमी
don del castillo (CC BY-NC-ND)

जलालुद्दीन मुहम्मद रूमी (जिन्हें जलालुद्दीन मुहम्मद बल्खी के नाम से भी जाना जाता है, लेकिन रूमी के नाम से अधिक प्रसिद्ध, 1207-1273 ई.) जो थे तो एक फारसी इस्लामी धर्मशास्त्री और विद्वान लेकिन एक रहस्यवादी कवि के रूप में प्रसिद्ध हुए, जिनका कार्य ईश्वर के व्यक्तिगत ज्ञान और प्रेम के माध्यम से एक सार्थक और उन्नत जीवन के अवसर पर केंद्रित था।

वह एक कट्टर सुन्नी मुसलमान थे और भले ही उनकी कविता धार्मिक प्रतिबंधों और हठधर्मिता से ऊपर एक उत्कृष्टता पर जोर देती है, लेकिन इसका आधार इस्लामी विश्वदृष्टि है। रूमी का ईश्वर सभी का स्वागत करता है चाहे उनका विश्वास कुछ भी हो और उनके माने आध्यात्मिक जीवन जीने के लिए केवल चाहिए -ईश्वर को जानने और स्तुति करने की इच्छा थी।

उनका जन्म अफ़गानिस्तान या ताजिकिस्तान में सुशिक्षित, फ़ारसी-भाषी माता-पिता के घर में हुआ था।उनके पिता एक मुस्लिम मौलवी थे ।रूमी ने अपने पिता के पेशे को अपनाया और खुद को एक सम्मानित विद्वान और धर्मशास्त्री के रूप में स्थापित किया, जब तक कि वे 1244 ई. में सूफ़ी रहस्यवादी शम्स-ए-तबरीज़ी (1185-1248 ई.) से नहीं मिले। उनसे मिलने के बाद रूमी ने इस्लाम के रहस्यमय पहलुओं को अपना लिया। 1248 ई. में शम्स के गायब होने के बाद, रूमी ने उन्हें तब तक खोजा जब तक उन्हें यह एहसास नहीं हो गया कि शम्स की आत्मा हमेशा उनके साथ थी, भले ही वह शरीर में मौजूद न थे।उन्होंने कविता लिखना शुरू कर दिया, जिसके बारे में उनका दावा था कि यह कला उन्हें इस रहस्यमय मिलन से मिली थी।

रूमी की कविता मानवीय स्थिति की गहरी समझ से अभिलक्षित है, जो कुछ खोने के दुःख के साथ-साथ प्रेम के उल्लासमय आनंद को भी पहचानती है

रूमी की कविता मानवीय स्थिति की एक गहरी समझ से प्रेरित है, जो कुछ खोने के दुख के साथ-साथ प्रेम के आनंद को भी पहचानती है। पारलौकिक प्रेम की शक्ति, चाहे किसी दूसरे व्यक्ति के लिए हो या ईश्वर के लिए, उनके काम का केंद्र है। उन्होंने इसे कुरान, हदीस, फ़ारसी पौराणिक कथाओं, किंवदंतियों और लोककथाओं के साथ-साथ दैनिक जीवन की विशिष्ट झांकियों से ली गई छवियों, प्रतीकों और कहानियों के माध्यम से व्यक्त किया है।

उन्होंने अपनी कविताएँ गोल-गोल घूमकर लिखीं, फिर छवियों को शब्दों में ढाला और उन्हें एक लेखक को लिखवाया। इस तरह सूफी दरवेश की चक्करदार प्रथा विकसित हुई, जो ईश्वर को समझने का एक साधन है। उन्हें मध्यकालीन युग के सबसे महान फ़ारसी कवियों में से एक तथा साथ ही विश्व साहित्य में सबसे प्रभावशाली कवियों में से भी एक माना जाता है और उनकी रचनाएँ आज भी बहुत लोकप्रिय हैं।

प्रारंभिक जीवन और नाम

रूमी का जन्म आधुनिक अफ़गानिस्तान के बल्ख शहर में हुआ था। एक सुझाव है कि उनका जन्मस्थान ताजिकिस्तान में वखसू (जिसे वख्श भी कहा जाता है) था, लेकिन बल्ख अधिक संभावित है क्योंकि यह ज्ञात है कि 13वीं शताब्दी की शुरुआत में वहाँ एक बहुत बड़ा फ़ारसी-भाषी समुदाय पनपा था लेकिन उससे भी अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि उनके नाम का एक संस्करण ‘बल्खी’ उनके मूल स्थान - ‘बल्ख से’को दर्शाता है।

उनकी मां के बारे में लगभग कुछ भी ज्ञात नहीं है लेकिन उनके पिता बहाउद्दीन वलद एक मुस्लिम धर्मशास्त्री और विधिवेत्ता थे, जिनकी सूफीवाद में रुचि थी। सूफीवाद इस्लाम के प्रति रहस्यवादी दृष्टिकोण है, जो ईश्वर के साथ एक व्यक्तिगत, अभिन्न संबंध के पक्ष में है और हठधर्मी प्रतिबंधों को खारिज करता है। सूफीवाद इस्लाम का एक संप्रदाय नहीं, बल्कि इस्लामी समझ के आधार पर व्यक्तिगत आध्यात्मिक रहस्योद्घाटन का एक उत्कृष्ट मार्ग है। हालाँकि उस समय के ( (और आज भी )कई रूढ़िवादी मुसलमानों ने सूफीवाद को एक विधर्म के रूप में खारिज कर दिया , लेकिन बल्ख शहर ने इसके विकास को प्रोत्साहित किया और सूफी गुरुओं का समर्थन किया। रूमी के पिता सूफीवाद में कितनी गहराई तक गए , यह ज्ञात नहीं है, लेकिन रूमी को उनके पिता के पूर्व छात्रों में से एक ,बुरहानुद्दीन महाक्किक ने, सूफीवाद के रहस्यवादी पहलुओं की शिक्षा दी थी, जिसने बाद में उनके इस आध्यात्मिक मार्ग को अपनाने की नींव रखी।

Sufis Dancing
सूफी नृत्य
Walters Art Museum Illuminated Manuscripts (Public Domain)

जब मंगोलों ने लगभग 1215 ई. में इस क्षेत्र पर आक्रमण किया, तो रूमी के पिता ने अपने परिवार और शिष्यों को इकट्ठा किया और बल्ख छोड़ कर चले गए। कहा जाता है कि अपनी यात्राओं के दौरान रूमी की मुलाक़ात निशापुर के सूफ़ी कवि अत्तर (1145-1220 ई.) से हुई, जिन्होंने उन्हें अपनी एक किताब दी, जिसने इस युवा व्यक्ति को काफ़ी प्रभावित किया। ऐसा लगता है कि रूमी के समूह के मन में पहले कोई निश्चित गंतव्य नहीं था, क्योंकि कहा जाता है कि कोन्या, अनातोलिया (आधुनिक तुर्की) में बसने से पहले उन्होंने आधुनिक ईरान, इराक और अरब के क्षेत्रों की यात्रा की थी। इस समय तक (लगभग 1228 ई.), रूमी की दो बार शादी हो चुकी थी और उनके तीन बेटे और एक बेटी थी। जब उनके पिता की मृत्यु हो गई, तो रूमी ने समुदाय में धार्मिक विद्यालय के शेख के रूप में अपना पद संभाला और अपने पिता के उपदेश, शिक्षण, धार्मिक संस्कारों और प्रथाओं का पालन तथा गरीबों की सेवा करना जारी रखा।

उनका नाम रूमी इसी काल से आया है क्योंकि अनातोलिया को अभी भी बीजान्टिन साम्राज्य (पूर्वी रोमन साम्राज्य, 330-1453 ई.) का प्रांत माना जाता था, ऐसा 1176 सी. ई. तक रहा जब इसका अधिकांश हिस्सा मुस्लिम तुर्कों के हाथों खो गया। इसलिए, जो कोई अनातोलिया से आता था, उसे रूमी कहा जाता था, जिसका अर्थ है रोमन।

शम्स-ए-तबरीजी

शम्स-ए-तबरीजी एक सूफी फकीर थे जो टोकरी बुनने का काम करते थे। शहर-शहर घूम कर वह दूसरों से मिलते-जुलते लेकिन एक किंवदंती के अनुसार - उन्हें कोई ऐसा व्यक्ति नहीं मिला जिससे वे पूरी तरह से दोस्त और बराबरी के तौर पर जुड़ सकते। उन्होंने अपनी यात्राओं को किसी ऐसे व्यक्ति को खोजने पर केंद्रित करना शुरू कर दिया जो, जैसा कि उनका कहना था "मेरी संगति को सहन कर सके" । एक दिन, एक अशरीरी आवाज़ ने उनकी प्रार्थनाओं का उत्तर देते हुए पूछा,"आप इसके बदले में क्या देंगे?" जिस पर शम्स ने उत्तर दिया, "अपना सिर!" इस पर आवाज़ ने उत्तर दिया, "आप जिसकी तलाश कर रहे हैं वह कोन्या का जलालुद्दीन है" (बैंक्स, xix)। फिर शम्स कोन्या गए जहाँ उनकी मुलाकात रूमी से हुई।

इस मुलाकात के कई अलग-अलग विवरण हैं, लेकिन सबसे ज़्यादा बार दोहराई जाने वाली कहानी सड़क पर हुई मुलाकात और शम्स द्वारा रूमी से पूछे गए सवाल की है। इस संस्करण में, रूमी बाज़ार में अपने गधे पर सवार होकर जा रहे थे, जब शम्स ने लगाम पकड़ी और पूछा कि कौन बड़ा है, पैगंबर मुहम्मद या रहस्यवादी बायज़ीद बेस्टमी। रूमी ने तुरंत जवाब दिया कि मुहम्मद महान हैं। शम्स ने जवाब दिया, "अगर ऐसा है, तो ऐसा क्यों है कि मुहम्मद ने ईश्वर से कहा 'मैने तुम्हें वैसे नहीं जाना जैसा मुझे जानना चाहिए था' जबकि बेस्टमी ने यह दावा करते हुए कि वह ईश्वर को इतनी अच्छी तरह से जानते हैं कि ईश्वर उनके भीतर रहते हैं और चमकते है, कहा 'मेरी महिमा हो’। रूमी ने जवाब दिया कि मुहम्मद फिर भी ज़्यादा महान हैं क्योंकि उनहें हमेशा ईश्वर के साथ एक गहरे रिश्ते की लालसा थी और वह यह स्वीकार करते थे कि चाहे वह कितने भी लंबे समय तक जीवित रहें, वह ईश्वर को पूरी तरह से नहीं जान पाएंगे, जबकि बेस्टमी ने ईश्वर के साथ अपने रहस्यमय अनुभव को अंतिम सत्य के रूप में स्वीकार कर लिया और आगे नहीं बढ़ पाए। यह कहने के बाद, रूमी बेहोश हो गए और अपने गधे से गिर गए। शम्स को एहसास हुआ कि यह वही आदमी था जिसे उसे ढूंढना था ।और जब रूमी बेहोशी से जागे तो दोनों ने गले मिले और दोनों अभिन्न मित्र बन गए (बैंक्स, xix-xx; लुईस, 155) मित्र के खो जाने पर रूमी के ग़म को ग़ज़ल के काव्यात्मक रूप में अभिव्यक्ति मिली जो एक ओर तो कुछ खो जाने पर शोक व्यक्त करती है तो वहीं दूसरी ओर उस शोक मनाए जाने के अनुभव का जश्न भी मनाती है।

अपने दोस्त के खोने पर रूमी ने इस दुख को ग़ज़ल के काव्यात्मक रूप में अभिव्यक्त किया, जो एक तरफ़ तो कुछ खो जाने का शोक मनाता है, वहीं दूसरी तरफ़ उस शोक के अनुभव का जश्न भी मनाता है।

उनका रिश्ता इतना करीबी था कि इसने रूमी के उनके छात्रों, परिवार और सहयोगियों के साथ स्थापित तालमेल को बिगाड़ दिया और इसलिए, कुछ समय बाद, शम्स कोन्या छोड़कर दमिश्क (या, अन्य रिपोर्टों के अनुसार, अजरबैजान में खोय) चले गए। हालाँकि, रूमी ने उन्हें वापस बुला लिया और दोनों ने अपने पुराने रिश्ते को फिर से शुरू कर दिया, जो एक स्तर पर गुरु-शिष्य का था, जिसमें शम्स शिक्षक थे, लेकिन मुख्य रूप से वह बौद्धिक बराबरी और दोस्ती का था।

एक शाम वे बातचीत कर रहे थे, तभी शम्स को पिछले दरवाजे पर बुलाया गया। वह जवाब देने के लिए बाहर गया लेकिन वापस नहीं लौटा और फिर कभी नहीं देखा गया। एक परंपरा के अनुसार, रूमी के एक बेटे ने उसकी हत्या कर दी थी, जो इस रहस्यवादी द्वारा अपने पिता के समय पर एकाधिकार करने और रूमी को उनके छात्रों से दूर करने से तंग आ गया था। एक अन्य के अनुसार, शम्स ने रूमी के जीवन से विदा लेने के लिए वह क्षण चुना, संभवतः उन्हीं कारणों से।

जो भी हो, रूमी को अपने दोस्त की ज़रूरत थी और वह उसे खोजने निकल पड़ा। विद्वान कोलमैन बैंक्स विस्तार से बताते हैं:

दोस्त की अनुपस्थिति का रहस्य रूमी की दुनिया पर छाया हुआ था। वह खुद शम्स की तलाश में निकल पड़ा और फिर से दमिश्क की यात्रा की। यहीं उसे एहसास हुआ,

मुझे तलाश क्यों करनी है? मैं वही हूँ

जो वह है। उसका सार मेरे ज़रिए बोलता है।

मैं खुद को तलाश रहा हूँ!

मिलन पूरा हो गया। (xx)

रूमी समझ गए थे कि किसी प्रियजन को खोने जैसी कोई बात वास्तव में नहीं होती क्योंकि वह व्यक्ति आपके अंदर से जीता, बोलता और काम करता रहता है। किसी करीबी व्यक्तिगत रिश्ते की गहराई को प्रियजन की अनुपस्थिति से कम नहीं किया जा सकता क्योंकि वह व्यक्ति स्वयं का हिस्सा बन चुका होता है। इस अहसास के बाद रूमी धर्मशास्त्री रहस्यवादी कवि रूमी बन गए और उन्होंने कविता लिखना शुरू कर दिया जिसके बारे में उनका मानना ​​था कि यह शम्स से आई थी।

कवि रूमी

अपने दोस्त के खोने पर रूमी ने इस दुख को ग़ज़ल के काव्यात्मक रूप में अभिव्यक्त किया, जो एक तरफ़ तो कुछ खो जाने का शोक मनाता है, वहीं दूसरी तरफ़ उस शोक के अनुभव का जश्न भी मनाता है। ग़ज़ल कहती है कि अगर अनुभव इतना सुंदर न होता, तो कोई व्यक्ति इतनी गहरी क्षति को महसूस नहीं कर पाता,इसलिए शोक मनाते हुए भी व्यक्ति को उस अनुभव के लिए आभारी होना चाहिए। रूमी की शुरुआती कविताएँ शम्स तबरीज़ी के दीवान (दीवान का अर्थ है किसी कलाकार की छोटी कृतियों का संग्रह) के रूप में प्रकाशित हुई थीं, जिसके बारे में रूमी का मानना ​​था कि इसे शम्स की आत्मा ने रचा था।

Statue of Rumi
रूमी की प्रतिमा
Ceyhun Jay Isik (CC BY-NC-ND)

उन्होंने अपनी ऊर्जा को काव्य रचनाओं पर केंद्रित करना जारी रखा ताकि दिव्य सत्यों को व्यक्त किया जा सके। वे महसूस करते थे कि अधिकांश लोग इसे अनदेखा कर देते हैं। रूमी ने कहा कि लोग अपने दैनिक जीवन में ईश्वर के अंतर्निहित रूप को पहचाने बिना ही जीते हैं, और उनकी कविता इसे व्यक्त करने और यह दिखाने का एक प्रयास था कि कैसे कोई व्यक्ति अपने दैनिक कार्यों में दिव्यता ला सकता है, चाहे वह कितना भी सांसारिक क्यों न हो, अपने जीवन को उच्च अर्थ और उद्देश्य से भर सकता है। बार्क्स टिप्पणी करते हैं:

ये कविताएँ पश्चिमी अर्थों में यादगार क्षणों के रूप में स्मारकीय नहीं हैं; वे अलग-अलग इकाइयाँ नहीं हैं, बल्कि एक तरल, निरंतर आत्म-संशोधन, आत्म-बाधित माध्यम हैं। वे किसी चीज़ के बारे में नहीं हैं, बल्कि किसी के भीतर से बोली गई हैं। इसे आत्मज्ञान, परमानंद प्रेम, आत्मा, सत्य, इल्म का सागर (दिव्य प्रकाशमान ज्ञान), या अलास्ट की वाचा (ईश्वर के साथ मूल समझौता)कुछ भी कहें।नाम मायने नहीं रखते। हर एक में सागर की कुछ प्रतिध्वनि मौजूद है। रूमी की कविता को उस सागर से आरती नमकीन हवा की तरह महसूस किया जा सकता है, जो आंतरिक भूमि की ओर बहती है।

रूमी ने अपनी कविता लिखने के लिए चाहे अपने जीवन की संपूर्णता - भौतिक दुनिया में जीए गए अनुभवों के साथ-साथ अनंत काल की अलौकिक झलकियों का भी सहारा लिया, लेकिन उनकी सभी कविताओं की अंतर्निहित और गूंजने वाली शक्ति प्रेम थी। रूमी के लिए, प्रेम ही आदमी को प्रेम सांसारिकता से उत्कृष्टता की ओर ले जाने वाला महान गुण है, रोजमर्रा की जिंदगी के क्षैतिज अनुभव से लेकर दैनिक गतिविधियों में ईश्वर की ओर ऊर्ध्वाधर चढ़ाई तक, चाहे वह गतिविधियों कितनी भी सरल क्यों न हो। कविता के निर्माण में उनके प्रयासों को जो मान्यता मिली है वो आज भी सारी दुनिया भर में गूंज रही है।

रूमी की रचनाएँ

रूमी की सबसे प्रसिद्ध रचनाएँ मसनवी, शम्स तबरीज़ी का दीवान तथा प्रवचन, पत्र और सात उपदेशों की गद्य रचनाएँ हैं। मसनवी का शीर्षक रचना के स्वरूप को दर्शाता है। मसनवी (अरबी में मथनवी के रूप में जाना जाता है) जो अनिश्चित लंबाई के तुकांत दोहों से बनी फ़ारसी कविता का एक रूप है। रूमी की मसनवी छह खंडों वाली काव्य रचना है, जिसे न केवल उनकी, बल्कि विश्व साहित्य की भी उत्कृष्ट कृति माना जाता है, जो लोगों का ईश्वर के साथ-साथ खुद से, एक-दूसरे से , और प्राकृतिक दुनिया से संबंधों की खोज करती है। विद्वान जाविद मोजादेदी लिखते हैं:

रूमी की मसनवी फ़ारसी सूफ़ी साहित्य के समृद्ध संग्रह में अब तक लिखी गई सबसे महान रहस्यमय कविता के रूप में एक उच्च स्थान रखती है। इसे आम तौर पर "फ़ारसी में कुरान" के रूप में भी संदर्भित किया जाता है। (xx)

हालाँकि इसमें कोई संदेह नहीं है कि रूमी ने प्रेरणा के लिए शम्स की आत्मा का सहारा लिया, लेकिन वे अरबी और फ़ारसी साहित्य और लोककथाओं में अच्छी तरह से शिक्षित थे और विशेष रूप से सनाई (1080 - लगभग 1131 ई.) और निशाबुर के अत्तर जैसे पहले के फ़ारसी कवियों से प्रेरित थे। सनाई, जिन्होंने सूफी मार्ग पर चलने के लिए दरबारी कवि के रूप में अपना पद त्याग दिया, ने द वॉल्ड गार्डन ऑफ़ ट्रुथ नामक उत्कृष्ट कृति लिखी जिसमें उन्होंने अस्तित्व की एकता की अवधारणा की खोज की और दावा किया कि "त्रुटि द्वैत से शुरू होती है"। जैसे ही कोई व्यक्ति खुद को दूसरों से - या ईश्वर से - दूर करता है, वह "हम और वे" का द्वैत स्थापित करता है जो उसे अलग-थलग और निराश कर देता है। अस्तित्व की प्रकृति को समझने और ईश्वर के साथ एक व्यक्तिगत संबंध बनाने के लिए, व्यक्ति को अस्तित्व की समग्रता को अपनाना चाहिए।यह पहचानना चाहिए कि ख़ुद में, दूसरे में और ईश्वर के बीच में किसी तरह की कोई दूरी नहीं है। धार्मिक हठधर्मिता के कृत्रिम विभाजन केवल अलगाव का काम करते हैं जबकि दूसरों की धार्मिक मान्यताओं और प्रथाओं को स्वीकार करना ईश्वर के अनुभव को बढ़ाता है ,जिसमें कोई विभाजन नहीं है, केवल स्वीकृति और बिना शर्त का प्यार है।

Page from the Masnavi
मसनवी का एक पृष्ठ
Walters Art Museum Illuminated Manuscripts (Public Domain)

रूमी अपनी सभी कविताओं में इस विषय को तलाशते हैं, लेकिन मसनवी में, वह अपनी कविता द मैन हू लर्न्ड टू नॉक ऑन हिज बिलव्ड्स डोर एंड से 'इट इज यू' में इस मुद्दे को स्पष्ट रूप से बताते हैं। इस विषय को मोजादेदी ने स्पष्ट किया है:

मसनवी में एक और प्रसिद्ध कहानी , पुस्तक एक में प्रेमी के बारे में संक्षिप्त और सरल कहानी है जो अपनी प्रेमिका के घर के दरवाजे पर दस्तक देता है (श्लोक 3069-76)। जब वह पूछती है, "वहां कौन है?" तो वह जवाब देता है, "मैं हूं!" और परिणामस्वरूप उसे वापस कर दिया जाता है। 'वियोग की ज्वाला में पकने' (श्लोक 3071) के बाद ही वह अपनी गलती से सीखता है और स्थिति की वास्तविकता को समझता है। वह उसके दरवाजे पर दस्तक देने के लिए वापस आता है, और इस बार, जब उससे पूछा जाता है कि "वहां कौन है?" तो वह जवाब देता है, "तुम हो", और उसे वहां प्रवेश करने दिया जाता है जहॉं दो 'मैं' को समायोजित नहीं किया जा सकता है। (xxv)

प्रेमी और प्रेमिका एक ही हैं, चाहे वे सांसारिक स्तर पर हों या ईश्वर की उच्चतर पहुंच पर । कृत्रिम परिभाषाएं, उथली समझ और पूर्वाग्रह केवल व्यक्ति को ब्रह्मांड में अपने स्थान की सच्ची समझ से अलग करने और ईश्वर के साथ ईमानदार संवाद की संभावना को प्रतिबंधित करने का काम करते हैं। जितना अधिक कोई व्यक्ति ईश्वर की स्तुति, सेवा और पूजा करने के लिए "सही तरीके" पर जोर देता है, उतना ही वह खुद को अलग कर लेता है जैसा कि मूसा और चरवाहे की कविता में दर्शाया गया है।

इस कविता में मोसिस (जिन्हें इस्लामी परंपरा में मूसा के नाम से जाना जाता है) एक गरीब चरवाहे की बातें सुनते हैं जो ईश्वर की स्तुति करते हुए कह रहा है कि वह ईश्वर के बालों में कंघी कैसे करेगा, उसके कपड़े कैसे धोएगा, उसके जूतों की देखभाल कैसे करेगा, उसे दूध कैसे पिलाएगा और उसके घर की सफाई कैसे करेगा, वह उससे बहुत प्यार करता है। मूसा ने चरवाहे को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि ईश्वर अनंत है और उसे किसी इंसान द्वारा इनमें से कोई भी काम करने की आवश्यकता नहीं है और मनुष्य को ऐसी बकवास बातें करने से बचना चाहिए। चरवाहा फटकार को स्वीकार करता है और रेगिस्तान में भटक जाता है। फिर ईश्वर मूसा को डांटते हुए कहते हैं:

तूने मुझे मेरे ही एक साथी से अलग कर दिया है। तू पैगम्बर के रूप में जोड़ने आया था या तोड़ने?

मैंने हर प्राणी को देखने, जानने और उस ज्ञान को कहने का एक अलग और अनोखा तरीका दिया है।

जो तुम्हें गलत लगता है, वही उसके लिए सही है।

जो किसी के लिए जहर है, वह किसी और के लिए शहद है।

मैं इन सबसे अलग हूँ।

उपासना के तरीकों को एक दूसरे से बेहतर या बदतर नहीं माना जाना चाहिए। (बैंक्स, 166)

मूसा पश्चाताप करता है, चरवाहे को खोज कर उससे माफ़ी मांगता है। चरवाहा उसे माफ़ कर देता है और कहता है कि उसे पहले ही यह अहसास हो चुका है कि ईश्वर की प्रकृति वैसी नहीं है जैसी कि उसने कल्पना की थी। रूमी, कथावाचक के रूप में टिप्पणी करते हैं, "जब भी आप ईश्वर की प्रशंसा या धन्यवाद करते हैं, तो यह हमेशा इस प्यारे चरवाहे की सादगी की तरह होता है" (बैंक्स, 168)। यह कविता रूमी का कुरान या अन्य इस्लामी साहित्य की कहानियों का उपयोग करके एक ऐसी बात कहने के अभ्यास का उदाहरण है जिसे उनके श्रोता स्वीकार करने के लिए तैयार होंगे।

कुरान में, सूरा 18:60-82, मूसा को इसी तरह से दर्शाया गया है जब ईश्वर उसे अल-खिद्र (ईश्वर का प्रतिनिधि) का अनुसरण करने के लिए भेजता है। अल-खिद्र मूसा से सीधे कहता है कि, अगर वह उसका अनुसरण करना चाहता है, तो उसे उसके किसी भी कार्य पर सवाल नहीं उठाना होगा। मूसा सहमत हो जाता है लेकिन फिर भी अल-खिद्र से बार-बार सवाल करता है। कहानी के अंत में, अल-खिद्र अपनी मंशा मूसा को समझाता है और यह स्पष्ट है कि मूसा के पास धैर्य नहीं था कि वह भगवान की योजना को ऐसे ही मान ले, बिना यह जाने कि उस योजना में क्या शामिल है और उसका अंतिम परिणाम क्या होगा। एक प्रसिद्ध धार्मिक व्यक्ति को एक ऐसे चरित्र के रूप में इस्तेमाल करना, जिसे अभी भी सिखाया जाने की ज़रूरत है और जो भगवान से सीखने के लिए तैयार है, ऐसा करने से ऐसे दर्शकों में विनम्रता को प्रोत्साहित किया गया जो आध्यात्मिक तल पर मूसा के कहीं आस पास भी नहीं थे।

रूमी के अनुसार, सबसे बड़ी सीख जो कोई सीख सकता है, उसे "सिखाया" नहीं जा सकता, बल्कि उसे अनुभव किया जाना चाहिए, और वह है - प्रेम के माध्यम से आत्मा का उत्थान। जब कोई किसी दूसरे व्यक्ति से प्यार करता है, तो वह उस प्रतिक्रिया को एक सूचि बना कर उसमें सीमित नहीं कर देता कि उसे दूसरे को खुश करने के लिए क्या करना चाहिए या क्या नहीं करना चाहिए; वह तो बस प्यार में पड़ जाता है और फिर उस रिश्ते को अपने व्यवहार को निर्धारित करने देता है।

इसी तरह, रूमी कहते हैं, व्यक्ति को ईश्वर से प्रेम करना चाहिए और तभी उसे एहसास होगा कि जीवन में क्या महत्वपूर्ण है और किस चीज़ को छोड़ने से वह असुरक्षित नही है। हालाँकि रूमी एक कट्टर मुसलमान थे, लेकिन उन्होंने अपने धर्म के सिद्धांतों को ईश्वर या अन्य लोगों के साथ अपने रिश्ते में हस्तक्षेप करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया। उनकी कविता आज भी इसी कारण से प्रासंगिक है: ईश्वरीय प्रेम की उत्कृष्टता कृत्रिम मानवीय निर्माणों को मान्यता नहीं देती है और सभी लोगों के लिए खुली और स्वागत करने वाली है, चाहे वे किसी भी चीज़ पर विश्वास करें या न करें।

निष्कर्ष

रूमी ने इस अवधारणा को कई कविताओं में व्यक्त किया है, लेकिन स्पष्ट रूप में अपने कार्य ‘लव डॉग्स’ में, जिसमें एक व्यक्ति लगातार ईश्वर से प्रार्थना करता है, जब तक कि उसे एक सनकी चुप नहीं करा देता। वह सनकी उससे पूछता है कि जब उसे कोई उत्तर ही नहीं मिल रहा तो वह प्रार्थना क्यों करता रहता है। वह व्यक्ति प्रार्थना करना बंद कर देता है और एक अशांत नींद में चला जाता है, जिसमें अल-खिद्र आता है और उससे पूछता है कि उसने अपनी प्रार्थना क्यों बंद कर दी। वह व्यक्ति उत्तर देता है, "क्योंकि मुझे अपनी प्रार्थना के उत्तर में कभी कुछ सुनाई नहीं दिया “और अल-खिद्र उत्तर देता है, " प्रार्थना में जो लालसा व्यक्त करते हो, वह ही संदेश में उत्तर है।" रूमी फिर पाठक से सीधे बात करते हुए कहते हैं, "अपने मालिक के लिए कुत्ते की कराह सुनो। / वह रोना ही संबंध है" (बैंक्स, 155-156)। रूमी के अनुसार, ईश्वर के साथ संबंध की लालसा का मानवीय अनुभव, यही उसकी प्रार्थनाओं का उत्तर है। व्यक्ति को उस लालसा को प्रेम के रूप में अपना लेना चाहिए तथा संदेह और भ्रम को विश्वास और अपने प्रियजन , जिसकी वह लालसा करता है, के आराम से बदल देना चाहिए।

रूमी ने 1273 ई. में अपनी मृत्यु तक मसनवी (जो कभी पूरी नहीं हुई) लिखना जारी रखा। इस समय तक वह अपने आध्यात्मिक ज्ञान, अंतर्दृष्टि और कविता लिखने के कौशल के लिए मावलवी (जिसे मेवलाना, "हमारे गुरु" के रूप में भी जाना जाता है) के रूप में जाने जाते थे। उनकी मृत्यु पर कोन्या के विविध समुदाय - मुस्लिम, यहूदी और ईसाई सभी ने एकजुट होकर उनके निधन पर शोक व्यक्त किया । उनके अवशेषों को सुल्तान के गुलाब के बगीचे में उनके पिता की कब्र के बगल में दफनाया गया। रूमी द्वारा विकसित सूफी समुदाय, मेवलवी आदेश ने 1274 ई. में उनकी कब्र पर एक भव्य मकबरा बनवाया, जो आज, तुर्की में कोन्या के मेवलाना संग्रहालय का हिस्सा है। यह एक ऐसी जगह है जहाँ दुनिया भर से रूमी के प्रशंसक आज भी इस गुरु को अपना सम्मान देने आते हैं।

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अनुवादक के बारे में

Ruby Anand
मैंने विज्ञान में बी.एस .सी. और सस्टेनेबल डिवैलपमैंट में एम.एस.सी. की है| मुझे यह बहुत दिलचस्प लगता है कि बीते हुए समय ने किस तरह इस दुनिया को , जिसमें आज हम रहते है, को आकार दिया है| इतिहास पर जानकारी के लिए worldhistory.org जानकारी का सबसे अच्छा स्तोत्र हैा

लेखक के बारे में

Joshua J. Mark
एक स्वतंत्र लेखक और मैरिस्ट कॉलेज, न्यूयॉर्क में दर्शनशास्त्र के पूर्व अंशकालिक प्रोफेसर, जोशुआ जे मार्क ग्रीस और जर्मनी में रह चुके हैं औरउन्होंने मिस्र की यात्रा की है। उन्होंने कॉलेज स्तर पर इतिहास, लेखन, साहित्य और दर्शनशास्त्र पढ़ाया है।

इस काम का हवाला दें

एपीए स्टाइल

Mark, J. J. (2020, May 25). रूमी [Rumi]. (R. Anand, अनुवादक). World History Encyclopedia. से लिया गया https://www.worldhistory.org/trans/hi/1-18951/

शिकागो स्टाइल

Mark, Joshua J.. "रूमी." द्वारा अनुवादित Ruby Anand. World History Encyclopedia. पिछली बार संशोधित May 25, 2020. https://www.worldhistory.org/trans/hi/1-18951/.

एमएलए स्टाइल

Mark, Joshua J.. "रूमी." द्वारा अनुवादित Ruby Anand. World History Encyclopedia. World History Encyclopedia, 25 May 2020. वेब. 16 Sep 2024.